सबसे पहले तो सभी पाठको को ईद की हार्दिक बधाई. तो अन्ना हजारे का अनशन अब समाप्त हो चूका है. परन्तु अपने अनशन को समाप्त करते हुए अन्ना ने कहा था की उनका अनशन समाप्त हुआ है, आन्दोलन नहीं. उन्होंने ऐसा क्यों कहा, ये हम अनशन के बाद की कुछ घटनाओ से जान सकते हैं. अन्ना को पता था कि हमारे सांसद अपनी सत्ता पर हमला बर्दाश्त नहीं कर सकते. वे कहते हैं कि जनता ने उन्हें चुन कर संसद में कानून बनाने भेजा है और ये उनका अधिकार है कि वे देश के लिए कानून बनायेंगे और सविंधान ने ये अधिकार और किसी को भी नहीं है. हमारे सांसद ये सोचते है कि एक बार जनता ने उन्हें चुन लिया तो फिर वे स्थायी रूप से संसद सदस्य बन गये हैं. अन्ना उनके इस आचरण के बारे में अच्छी तरह से जानते है तभी तो उन्होंने अपना आन्दोलन जारी रखने की बात कही है. हमारे सांसद उस कुत्ते की पूंछ की तरह है जिसे कितना भी नलकी में रखे वह सीधी नहीं हो सकती. अन्ना के अनशन समाप्त होने के बाद की तीन घटनाओ का मैं विशेष रूप से जिक्र करना चाहूँगा जो हमारे राजनेताओं के वास्तविक चरित्र को उजागर करती हैं.
सबसे पहली घटना खेल मंत्री श्री अजय माकन द्वारा प्रस्तुत बिल को कैबिनेट द्वारा नामंज़ूर किया जाना है. इस बिल का उद्देश्य खेल संघो पर नकेल कसना था. इस बिल के प्रावधानों के अनुसार खेल संघो को सुचना अधिकार के तहत लाना, २५% स्थान खिलाडिओं के लिए आरक्षित करना, अध्यक्ष के कार्यकाल को सीमित करना तथा और इस तरह के उपाए करना था जो खेल संघो पर नकेल कसते. परन्तु हमारे राजनेताओ को ये बिल इस लिए पसंद नहीं आया क्योंकि ज्यादातर खेल संघो के अध्यक्ष और कोई नहीं बल्कि ये राजनेता है और इस बिल के आ जाने से न केवल उनका खेल संघ के पद से जाना तय था बल्कि उनके भ्रस्टाचार का भी उजागर होना तय था. जाने माने समाचार विश्लेषक विनोद दुआ ने अपने कार्यक्रम में सही कहा था ये नेता कुर्सी से चिपके हुई जोंक है जिन्हें ये बर्दाश्त नहीं है कि कोई उन्हें इस कुर्सी से हटाने की कोशिश करे. और इस बिल पर आपत्ति करने में सबसे ज्यादा भूमिका शरद पवार की है जो भारतीय क्रिकेट कण्ट्रोल बोर्ड के अध्यक्ष रह चुके है और अब अंतररास्ट्रीय क्रिकेट कौंसिल के अध्यक्ष हैं.
दूसरी घटना गुजरात की है जहाँ भारतीय जनता पार्टी की सरकार है. ये वही भारतीय जनता पार्टी है जिसने संसद में सरकार को इस बात के लिए घेरा था कि वोह अन्ना को अनशन के लिए रोक रही है. भारतीय जनता पार्टी के महान नेताओं ने अपने आपको अन्ना के साथ बताया था और उनके द्वारा सुझाये गए बिन्दुओं पर बहस में बढ़ चढ़ कर भाग लिया था जिसमे एक बिंदु ये भी था कि राज्यों से भ्रस्टाचार को समाप्त करने के लिए लोकायुक्त को लाया जाए परन्तु जब राज्यपाल ने गुजरात में ७ वर्षों से खली पड़े लोकायुक्त पद पर नियुक्ति की तो उसने अपना असली रंग दिखा दिया जब बी जे पी नेताओं ने संसद की कार्यवाही को नहीं चलने दिया. ये उनका दोहरा चरित्र नहीं तो और क्या है?
तीसरी घटना तमिलनाडु की है जहाँ पक्ष व् विपक्ष ने राजीव गाँधी के हत्यारों की सजा की माफ़ी के बाबत राष्ट्रपति द्वारा याचिका रद्द कर देने पर एकमत होकर ये प्रस्ताव पास किया की उन्हें माफ़ी दी जाए. ये घटना यह बताने के लिए काफी है कि आज हमारे राजनेता किस हद तक गिर गए हैं. जिन हत्यारों ने आंतकवाद फैलाया आज उन्ही के लिए माफ़ी की मांग की जा रही है. इसका असर ये होगा कि आंतकवादियो का होसला बढेगा और वे देशवासियो का जीना दूभर कर देंगे. राजनितिक पार्टिया ऐसा इस लिए कर रही हैं क्योंकि ये हत्यारे तमिल समुदाय के हैं और उनके लिए माफ़ी की मांग करके अपना वोट बैंक मजबूत करना चाहती हैं.
ये तीनो ही घटनाये हमारे मन में निराशा उत्पन कर सकती है. क्या अन्ना हजारे का आन्दोलन और उस आन्दोलन के पीछे का जनसैलाब इन बेईमान नेताओं के लिए कोई मायने नहीं रखता. क्या उन्हें इस बात से कोई मतलब नहीं है कि जिस वोट बैंक के सहारे आज वो सांसद बने है वोही वोट बैंक उन्ही सांसदों के प्रति रोष रखता है? क्या इन नेताओ को इस वोट बैंक की दोबारा जरूरत नहीं है या वो ये समझते है कि जनता बेवकूफ है और भुलक्कड़ है जो जल्दी ही ये बाते भूल जाएगी और दोबारा उन्हें वोट देकर फिर से संसद में भेजेगी ताकि वो जनता को और देश को मुर्ख बनाते रहे. बिहार और पश्चिम बंगाल की जनता ने ये दिखे दिया है कि उसे अब कोरे वादे नहीं बल्कि जमीनी स्तर पर ठोस कार्य चाहिए, तभी वो दोबारा उन्हें सत्ता में ले कर आएगी.
वही इस आन्दोलन का एक उजला पक्ष ये भी है कि बिहार के मुख्यमंत्री श्री नितीश कुमार ने लोकायुक्त को मजबूत करने के लिए कदम उठाने शुरू कर दिए है जिनमे मुख्यमंत्री को लोकायुक्त के दायरे में लाना और भ्रष्ट अधिकारिओ के कारनामो को यु ट्यूब पर डालना शामिल है. वही दूसरी और दिल्ली की मुख्यमंत्री श्रीमती शीला दीक्षित ने १५ सितम्बर तक सिटिज़न चार्टर लागू करने की बात कही है. दिन के बाद रात आती है लेकिन रात हमेशा नहीं रहती. रात के अँधेरे को दूर करने के लिए सूर्य को दोबारा आना ही होता है. भ्रस्ताचार के अँधेरे को दूर करने के लिए अन्ना हजारे के आन्दोलन ने किरने दिखाई है जो एक नयी सुबह का पैगाम है. उम्मीद करते हैं कि ये सुबह कभी तो आएगी और जल्द ही आएगी. इसी उम्मीद के साथ मैं एक बार फिर सभी देशवासियो को ईद कि हार्दिक बधाई देता हूँ और अल्लाह ये गुज़ारिश करता हूँ यह ईद भी एक नई सुबह का पैगाम लेकर ही आये.
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